प्राचीन भेरू महाराज का मन्दिर दुर दराज से आते है भक्त लोग फरर्ना बावजी के नाम से प्रसिद्ध स्थल पढे खबर
News Published By Mr.Dinesh NalwayaPublish Date: 28-10-2023
मनोज जोशी
बड़ावदा:- जावरा उजैन रोड़ पर स्थित
प्राचीन भगवान देवनारायण का प्रसिद्ध मंदिर जहां मध्य प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से भी दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु!
यहां काला भेरुजी एवं गोरा भेरुजी दोनों की एक साथ मूर्ति विराजित है जो भक्त यहां सच्चे मन से अपनी मुराद मांगता है निश्चित ही यहां भक्तों की हर मुराद पूरी होती है
मदिरा का लगाया जाता है भोग!
मंदिर की खासियत है कि भगवान की प्रतिमा के आगे जैसे ही शराब का भोग लेकर भक्त भगवान के मुंह के पास ले जाते हैं वैसे ही मदिरा मानो जैसे आम व्यक्ति गटकता हो इस तरह से प्रतिमा मदिरा का भोग लेती है कई वर्षों पुराना है यह स्थल वर्षों पुरानी प्रथा आज भी निरंतर जारी है! गुर्जर समाज के लोग लोक देवता के रूप में पुजते हैं भगवान देवनारायण को!
पूर्व में मंदिर के सेवकों से मिली जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि लोक देवता भगवान देवनारायण ने यहां विश्राम किया था मंदिर के अंदर भगवान देवनारायण की गद्दी भी विराजित है!
प्रतिवर्ष 11 दिन का मेला भी दीपावली से लेकर देवउठनी ग्यारस तक यहां आयोजित होता है! हर साल यहां पर विशाल मेंले का आयोजन होता है जिसमें दूर- दराज से भक्त लोग यहां मेला देखने के साथ-साथ भगवान के दर्शन करने उपस्थित होते हैं देवउठनी ग्यारस को भगवान देवनारायण की झांकी मंदिर से निकलकर मेला प्रांगण से होती हुई साडू माता की बावड़ी तक पहुंचती है तत्पश्चात मेले का समापन होता है!
ऊंची टेकरी पर स्थित है भगवान देवनारायण का मंदिर मंदिर के पास सड़क किनारे माता साडू का मंदिर है जहां बावड़ी के नजदीक माता साडू विराजित है जहां दूर-दूर से लोग साडू माता के दर्शन करने आते हैं साडू माता की बावड़ी का एक और रहस्य है जोकि शतप्रतिशत प्रमाणिक है प्रसूता के दौरान माता एवं बहनों में अपने नवजात बच्चे को स्तनपान की समय दूध की समस्या होती है जिसके चलते दुर्दशा से यहां लोग नवजात बच्चे की मां का ब्लाउज लेकर यहां आते हैं जिसे साडू माता की बावड़ी में गिला करके पुनः नवजात बच्चे की मां को पहनाया जाता है जिससे शत प्रतिशत दूध की कमी पूर्ण होती है! इतना ही नही शादी ब्याहों के दौरान अगर वर वधु के शादी की तारीख एवं शुभ मुहूर्त का मिलान नहीं होता है जिसे लेकर भी लोग यहा पहुंचते हैं जहां भगवान देवनारायण की पाती दी जाती है पाति के पश्चात शादी ब्याह में मुहूर्त की अर्चने नहीं रहती!
आदिवासी समाज का समूह भी बड़ी ही संख्या में आस्था एवं विश्वास लेकर यहां उपस्थित होता है साथ ही मेले के दौरान आदिवासी समाज द्वारा नृत्य कर भगवान भैरू महाराज एवं देवनारायण भगवान को प्रसन्न कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने की कामना की जाती है
यहां काला भेरुजी एवं गोरा भेरुजी दोनों की एक साथ मूर्ति विराजित है जो भक्त यहां सच्चे मन से अपनी मुराद मांगता है निश्चित ही यहां भक्तों की हर मुराद पूरी होती है
मदिरा का लगाया जाता है भोग!
मंदिर की खासियत है कि भगवान की प्रतिमा के आगे जैसे ही शराब का भोग लेकर भक्त भगवान के मुंह के पास ले जाते हैं वैसे ही मदिरा मानो जैसे आम व्यक्ति गटकता हो इस तरह से प्रतिमा मदिरा का भोग लेती है कई वर्षों पुराना है यह स्थल वर्षों पुरानी प्रथा आज भी निरंतर जारी है! गुर्जर समाज के लोग लोक देवता के रूप में पुजते हैं भगवान देवनारायण को!
पूर्व में मंदिर के सेवकों से मिली जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि लोक देवता भगवान देवनारायण ने यहां विश्राम किया था मंदिर के अंदर भगवान देवनारायण की गद्दी भी विराजित है!
प्रतिवर्ष 11 दिन का मेला भी दीपावली से लेकर देवउठनी ग्यारस तक यहां आयोजित होता है! हर साल यहां पर विशाल मेंले का आयोजन होता है जिसमें दूर- दराज से भक्त लोग यहां मेला देखने के साथ-साथ भगवान के दर्शन करने उपस्थित होते हैं देवउठनी ग्यारस को भगवान देवनारायण की झांकी मंदिर से निकलकर मेला प्रांगण से होती हुई साडू माता की बावड़ी तक पहुंचती है तत्पश्चात मेले का समापन होता है!
ऊंची टेकरी पर स्थित है भगवान देवनारायण का मंदिर मंदिर के पास सड़क किनारे माता साडू का मंदिर है जहां बावड़ी के नजदीक माता साडू विराजित है जहां दूर-दूर से लोग साडू माता के दर्शन करने आते हैं साडू माता की बावड़ी का एक और रहस्य है जोकि शतप्रतिशत प्रमाणिक है प्रसूता के दौरान माता एवं बहनों में अपने नवजात बच्चे को स्तनपान की समय दूध की समस्या होती है जिसके चलते दुर्दशा से यहां लोग नवजात बच्चे की मां का ब्लाउज लेकर यहां आते हैं जिसे साडू माता की बावड़ी में गिला करके पुनः नवजात बच्चे की मां को पहनाया जाता है जिससे शत प्रतिशत दूध की कमी पूर्ण होती है! इतना ही नही शादी ब्याहों के दौरान अगर वर वधु के शादी की तारीख एवं शुभ मुहूर्त का मिलान नहीं होता है जिसे लेकर भी लोग यहा पहुंचते हैं जहां भगवान देवनारायण की पाती दी जाती है पाति के पश्चात शादी ब्याह में मुहूर्त की अर्चने नहीं रहती!
आदिवासी समाज का समूह भी बड़ी ही संख्या में आस्था एवं विश्वास लेकर यहां उपस्थित होता है साथ ही मेले के दौरान आदिवासी समाज द्वारा नृत्य कर भगवान भैरू महाराज एवं देवनारायण भगवान को प्रसन्न कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने की कामना की जाती है