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मैरिंगो सिम्स हॉस्पिटल, अहमदाबाद के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की टीम मीडियाकर्मियों से हुई रूबरू पढ़े खबर

News Published By Mr.Dinesh Nalwaya
Publish Date: 30-11--0001

नीमच। हर साल देश को 40 हजार दिल और डेढ़ लाख किडनी की जरूरत होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट व पीजीआई समेत अन्य मेडिकल संस्थाओं के शोध के अनुसार गंभीर बीमारियों से जूझ लोगों के लिए प्रतिवर्ष 50 हजार फेफड़ों और 40-50 हजार लीवर और 2500 पेनक्रियाज (अग्नाश्य) की जरूरत होती है। अंग फेल होने की वजह से हर साल 3 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। दस लाख लोगों में से 232 की जान किडनी नहीं मिलने की वजह से हर साल जा रही है। अंगदान नहीं होने की वजह से मरीजों की जान बचानी काफी मुश्किल होती है। आजकल की खराब जीवनशैली और खान-पान का असर हमारे अंगों पर भी पड़ रहा है। इनमें लिवर सबसे आम है। यानी हम जो भी खाते हैं, उसका सीधा असर हमारे लिवर पर पड़ता है। लिवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, ऐसे में इसे सुरक्षित रखने के लिए सही खान-पान जरूरी होता है। कई लोगों को लगता है कि सिर्फ एल्कोहल लेने से ही लिवर की बीमारियां होती हैं, लेकिन गलत खान-पान भी लिवर खराबी का कारण बन सकता है। ऐसे में ख़राब लीवर का प्रत्यारोपण एक शल्यक्रिया है जिसके द्वारा अस्वस्थ लीवर को निकाल कर उसके नियत स्थान पर दूसरे स्वस्थ लीवर को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। लीवर के प्रत्यारोपण पर तभी विचार किया जाता है जब वह ठीक तरीके से कार्य नहीं कर रहा हो। उक्त जानकारी गुजरात के प्रसिद्ध मैरिंगो सिम्स हॉस्पिटल, अहमदाबाद के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की एक टीम नीमच जिले के मीडियाकर्मियों से रूबरू हुईं। इस दौरान न्यूरो इंटरवेंशन और स्ट्रोक, नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट एचपीबी सर्जरी एवं लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर पुरे देश में अपने सफल इलाज की जानकारी मीडिया को प्रदान की। साथ ही प्रेस ब्रीफिंग में डॉ मुकेश ऍन शर्मा डायरेक्टर, न्यूरो इंटरवेंशन और स्ट्रोक, डॉ सिद्धार्थ मावाणी डायरेक्टर, नेफोलोजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ, डॉ. विकास डी. पटेल डायरेक्टर, एचपीबी सर्जरी एवं लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ उपस्थित रहे। इस दौरान सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की उक्त टीम ने बताया की लिवर ट्रांसप्लांट दो तरह के होते हैं। कैडवेरिक डोनर ट्रांसप्लांट – इसमें मरने वाले व्यक्ति का लीवर लिया जाता है। एक मृत व्यक्ति केवल तभी दाता हो सकता है जब उसने अपनी मृत्यु के बाद अंगदान की अनुमति देने वाले सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हों। दाता की पहचान और मृत्यु के कारण को गोपनीय रखा जाता है। जीवित दाता प्रत्यारोपण– स्वस्थ जीवित दाता से लीवर का एक भाग निकाल कर प्राप्तकर्ता के शरीर में स्थानांतरित कर दिया जाता है। लीवर एक ऐसा अंग है जो पुन: उत्पन्न करने में सक्षम है, इसलिए, दाता और प्राप्तकर्ता दोनों का यकृत कुछ ही हफ्तों में पर्याप्त आकार में बढ़ जाएगा। जीवित दाता मृत दाता की प्रतीक्षा करने का विकल्प प्रदान करते हैं और दाता की प्रतीक्षा करते समय प्राप्तकर्ता द्वारा सामना की जाने वाली जटिलताओं को कम करते हैं। जीवित दाता एक स्वस्थ परिवार का सदस्य, रिश्तेदार, मित्र या कोई अज्ञात व्यक्ति हो सकता है जो दान करने को तैयार हो। जीवित दाता को लीवर डोनेशन के योग्य होने से पहले व्यापक परीक्षण से गुजरना होगा। लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि डोनर का लिवर 6-8 सप्ताह में लगभग अपने पूर्ण आकार में वापस आ जाता है। डोनर 6-8 सप्ताह के भीतर अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में वापस लौट आते हैं। लीवर से जुड़ी परेशानियों के बारे में साथ ही बताया की मैरिंगो सिम्स हॉस्पिटल, अहमदाबाद के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हमारे यहाँ लीवर ट्रांसप्लांट और एचपीबी सर्जरी के कंसलटेंट हैं। कोरोना वायरस से लोगों की मृत्यु दर बड़ी है और यह वायरस लंबे समय तक लीवर को प्रभावित करता है। 'रिकवरी के बाद भी देखा गया है कि क्रोनिक लीवर डिज़ीज़ वाले कोविड-19 रोगियों में काफी ज्यादा मौत का खतरा बना रहता है। खासकर अल्कोहल से जुड़े लीवर की बीमारियां कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा बढ़ा देती है। कोरोना के कुछ मरीजों में लीवर एंजाइम बढ़ जाते हैं। इस दौरान डॉक्टर डॉ. विकास डी. पटेल डायरेक्टर, एचपीबी सर्जरी एवं लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ ने समझाया कि किस तरह ठीक होने के बाद लीवर के मरीजों की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए और दवा के साथ इलाज किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'आमतौर पर दो चीजें होती है. या तो कोरोना वायरस सीधा लीवर पर असर दिखाता है या फिर हाइपॉक्सिक और साइटोकाइन स्ट्रॉर्म के जरिए। कई बार दवाई के असर से भी लीवर को नुकसान पहुंचता है। दरअसल कोरोना के कुछ गंभीर मरीजों को दवाई की ज्यादा डोज़ दी जाती है। 'इसलिए, ऐसे रोगियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। उन्हें स्वस्थ आहार लेना चाहिए और नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण वाले मरीजों को अपना इलाज जारी रखना चाहिए और अपने हेपेटोलॉजिस्ट के साथ नियमित रूप से कोरोना के ठीक होने के बाद का पालन करना चाहिए। अंगदान से बच सकती हैं 8 जिंदगियां - एक अंगदाता करीब 8 जिंदगियों को बचा सकता है। अंगदान में 8 अंग दान किए जाते हैं। मृत व्यक्ति की किडनी, लीवर, फेफड़ा, ह्रदय, पैंक्रियास और आंत दान में दिया जा सकता है। साल 2014 में इस सूची में हाथ और चेहरे को भी शामिल किया गया। कोई जिंदा व्यक्ति चाहे तो वह एक किडनी, एक फेफड़ा, लीवर का कुछ हिस्सा, पैंक्रियास और आंत का कुछ हिस्सा दान कर सकता है। गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोग अंगदान नहीं कर सकते हैं। अंगदान और देहदान में अंतर - अंगदान और देहदान में अंतर होता है। देहदान एनाटोमी पढ़ने के काम आता है, जबकि अंगदान किसी व्यक्ति को जीवनदान या उसके जीवन की गुणवत्ता में सुधर के लिए होता है। अंगदान दो तरीके से होता है लाइव डोनेशन और मृत्यु के बाद दान।
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